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( ३४ ) एवंभूत दृष्टिथी ऋजुसूत्र स्थिति कर ऋजुसूत्र दृष्टिथी एवंभूत स्थिति कर नैगम दृष्टिथी एवभूत प्राप्ति कर एवंभूत दृष्टिथी नैगम विशुद्ध कर सग्रह दृष्टिथी एवभूत था एवभूत दृष्टिथी सग्रह विशुद्ध कर व्यवहार दृष्टिथी एवभूत प्रत्ये जा एवंभूत दृष्टिथी व्यवहार विनिवृत्त कर शब्द दृष्टिथी एवंभूत प्रत्ये जा एवंभूत दृष्टिथी शब्द निर्विकल्प कर. समभिरूढ दृष्टिथी एवभूत अवलोक एवभूत दृष्टिथी समभिरूढ स्थिति कर. एवभूत दृष्टिथी एवभूत था एवंभूत स्थितिथी एवंभूत दृष्टि शमाव. ॐ शातिः शाति शाति.
हा० नो० २-१६