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पारमार्थिक हतुविदोषयों पत्रादि उसवानु बनी
वक्तु नयी
जे मनित्य छे जे अगार छे अने जे अशरणम् छे ते आ जीवने प्रीतिन धारण वेम थाय छे ते वात रात्रि दिवस विचारया योग्य छे
एष्टि अने ज्ञानीनी दष्टिने पश्चिम पूर्व जेटली वरावत छे नानीनी दृष्टि प्रथम निरालबन छ, रचि उत्पन करती नथी, जीवनी प्रकृतिन मळती आवतो नयी; सभी जीव से ष्टिमा विवा तो नयी, पण जे जीयोए परिषह पीने पाडावाळ सुधा ते दृष्टि आराधा क्यू तं गर्व दुःखना यस्य निर्वाणने पापा से, तेरा चपायो पाया छे
जीवन प्रमान्मां अनादियो रवि छ, पण वेमा रति रखा योग्य पादपातु नमी
ॐ
मुंबई आगो गुद ८, रवि, १९५३