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( २५) जीव स्वभाव (पाताना समजणनी भरे) दोपित छ, त्या पछी तेना दोष भणी जोवु ए अनुक्पानो त्याग करवा जेनु थाप छ, भने मोटा पुष्पो तेम आचरवा इच्छता नयी कळियुगमा अमत्मगथी अने अणसमजणथी भूरभररे रस्ते न दाराय एम बनवु बहु मुश्केल छ
मुबई, असाड वद ४, १९४७
(२६) जे जे प्रकार आत्माने चिंतन कर्यो होय ते ते प्रकारे ते प्रतिमासे छे _ विषयात्तपणाथी मढताने पामेली विचारशवितवाळा जोवन आत्मानु नित्यपणु भासतु नयी एम घणु परीने देखाप छे, तेम थाय छ, त यथार्थ छ, केम अनित्य एवा विषयने विपे आत्मबुद्धि होवाथी पोतानु पण अनित्यपणु भासे छे
विचारवानने मात्मा विचारवान लागे छ शूयपणे चितन फरलारने आत्मा शून्य लागे छ, अनित्यपणे चिंतन