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१०१ धवत प्रतिकूल प्रमगे विरोपे होय छे, ए वात निश्चय मरवा याग्य छे
ए (प्रतिकूळ ) प्रसग ना गमवार वेदवामा भावे तो जीवने निर्वाण ममीपनु साधन छे व्यावहारिक प्रसगोनु नित्य चित्रविचित्रपणु छे मात्र कल्पना तेमा सुख अने कल्पनाए दुख एयी तेनी स्थिति छ अनुवूळ कल्पनाए ते अनुकूळ भास छ, प्रतिकूल पनाए ते प्रतिकूळ मासे छ, अने ज्ञानीपुरपोए ते बय कल्पना करवानी ना कही छे विचारवानने शोक घटे नही, एम श्री तीयपर कहता हता
मुबई, फागण १९५०
( २९ )
नित्यनियम
* श्रीमसरमगुरुभ्यो नम सवारमा ऊठी ईपिथिको प्रतिक्रमी रात्रि दिवस जे क अठार पापस्थानमा प्रवृत्ति थई होय, सम्यग्ज्ञान दशन चारित्र सवधी तथा पचपरमपद सबधी जे पर्द अपराध थयो होय, कोई पण जीव प्रति किंचित्मात्र पण