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तीव्र परिणामे, भवभयरहितपणे नानीपुरुष के सम्यक् दृष्टि जीवने क्रोध, मान, माया के लाभ होय नही जे ससारअर्थे अनुवध कर छे, ते करतापरमायने नामे, भ्रान्ति गत परिणामे अमद्गुरु, देव धर्मने भजे छे, ते जीवने घणु करी अनतानुबधी क्रोध, मान, माया, लोम थाय छ, कारण ये बीजी ससारनो क्रियाओ घणु करी अनत अनुवध परवावाळी नथी, मात्र अपरमायने परमाय जाणी आग्रह जीव भज्या करे, ते परमाथनानी एवा पुरुष प्रत्ये, देव प्रत्ये, धर्म प्रत्ये निरादर छ, एम कहेवामा घणु करी यथार्थ छे ते सद्गुरु, देव, घम प्रत्ये असतगुर्वादिक्ना आग्रहथी माठा चोपथी, आगातनाए, उपेक्षाए प्रवत एवो सभव छे तेमज त माठा सगथी तेनी ससारवासना परिच्छेद नही थती होवा ता ते परिच्छेद मानी परमाथ प्रत्ये उपेपर रहे छे, ए ज अनतानुबघी क्रोध मान, माया, लोभनो आकार छ मुबई वीजा अ० वद ६, १९४९
'अनतानुवधी नो दाजो प्रकार रख्यो छे ते विष विकोपार्थ नाचे रख्याथी जाणशो -