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छे मुख्य करीने अहो कह्या छे ते स्थानके ते स्पायनो विशेष ममव छ सनदव सदगुरु अने सन्घमनो जे प्रकारे द्वाह थाय, अवज्ञा थाम, तथा विमुखमाव थाय, ए आदि प्रवृत्तियी तमज असतदव, असतगुरु तथा अमत्पमना जे प्रकार आग्रह थाप, त मवधा कृतकृत्यता माय थाय, ए आदि प्रवत्तिथी प्रवतता 'जनतानुबधी कपाय' सभव छ, अथवा नीना वचनमा स्त्रीपुत्रादि भावोने जे मर्यादा पछी इच्छना निवस परिणाम कह्या छे, ते परिणाम प्रक्तता पण 'अनतानुवघी' होवा योग्य छ सक्षेपमा 'अनतानुबधी पाय'नी व्याख्या ए प्रमाणे जणाय छ ।
मुबई, असाड सुद ११, बुध, १९५१ अनतानुरघो क्रोध, मान, माया अने लोभ सम्पकत्व मिवाय गया मभवे नहीं एम जे बहेवाय छे ते यथार्थ छे ससारी पदार्योने विषे जीवने तीव्र स्नेह विना एवा क्रोप मान, पाया अने लोभ हाय नही, के जे कारण तेने अनत मसारनो अनुबध याय जे जीवने समारा पदार्थो विप तीन स्नह वततो हाय तने पाई प्रसगे पण अनंतानुवधी प्रावमापी काई पग उन्य श्रवा मभवे छ अने ज्या सुधी तीन स्नेह से पार्थोमा होय त्या सुपी अवश्य परमायमाग