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वाळो जीव ते न होय. परगार्धमार्गनुं लक्षण ए छे के अपरमार्थने भजता जीव बवा प्रकारे कायर धया करे, सुखे अथवा दु.से दुखमां कायरपणु कदापि वोजा जीवोनुं पण सभवे छे, पण संमारसुखनी प्राप्तिमा पण कायरपण, ते सुखनुं अणगमवापणु, नीरसपण परमार्थमार्गी पुरुषने होय छे
तेवु नीरसपणु जीवने परमार्थज्ञाने अथवा परमार्थज्ञानीपुस्पना निश्चये थवु सभवे छे, वीजा प्रकारे थवु संभवतु नथी परमार्थज्ञाने अपरमार्थरूप एवो आ ससार जाणी पछी ते प्रत्ये तीव्र एवो क्रोध, मान, माया के लोभ कोण करे ? के क्याथी थाय ? जे वस्तुनु माहात्म्य दृष्टिमाथी गयु ते वस्तुने अर्थे अत्यत क्लेश थतो नथी ससारने विषे भ्रान्तिपणे जाणेलु सुख ते परमार्थज्ञाने भ्रान्ति ज भासे छे, अने जेने भ्रान्ति भासी छे तेने पछी तेनु माहात्म्य शु लागे? एवी माहात्म्यदृष्टि परमार्थनानीपुरुषना निश्चयवाळा जीवने होय छे, तेनु कारण पण ए ज छे. कोई ज्ञानना आवरणने कारणे जीवने व्यवच्छेदक ज्ञान थाय नही, तथापि सामान्य एवु ज्ञान, ज्ञानीपुरुषनी श्रद्धारूपे थाय छे वडना बीजनी पेठे परमार्थ-वडन वीज ए छ.