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२७ कुपात्र पण सत्पुरुषना मूकेला हस्तथी पात्र थाय छे.
जेम छाशथी शुद्ध थयेलो सोमल शरीरने नीरोगी
करे छे २८ आत्मानु सत्य स्वरूप एक शुद्ध सच्चिदानंदमय छे,
छता भ्रातिथी भिन्न भासे छे, जेम त्रासी आख
करवाथी चद्र बे देखाय छे २९ यथार्थ वचन ग्रहवामा दभ राखशो नही के आपनारनो
उपकार ओळवशो नही ३० अमे बहु विचार करीने आ मूळतत्त्व शोध्य छे के
गुप्त चमत्कार ज सृष्टिना लक्षमा नथी ३१ रडावीने पण बच्चाना हाथमा रहेलो सोमल लई लेवो ३२ निर्मळ अत करणथी आत्मानो विचार करवो योग्य छे. ३३ ज्या 'हु' माने छे त्या 'तु' नथी; ज्या 'तु' माने छे
त्या 'तु' नथी. ३४ हे जीव ! हवे भोगथी शात था, गात विचार तो
खरो के एमा कयु सुख छे ? ३५ बहु कटाळीने ससारमा रहीश नही ३६ मत्ज्ञान अने सत्शीलने साथे दोरजे. ३७ एकथी मैत्री करीश नही, कर तो आखा जगतथी करजे.