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९ निर्दोषने अल्प मायाथी पण छेतरवो । १० यूनाधिक तोळी आप ११ एकने बदले बीजु अथवा मिश्र वरीने आपवु १२ कर्मादानी षधो १३ लाच के अत्तादान
ए वाटेथी कई रळवु नही ए जाणे सामा य व्यवहार गुद्धि उपजीवन अर्थ कही गयो ( अपूण )
__ पवाणिया, माह, १९४५
(१०) नीरागी महात्मामओने नमस्कार कर्म ए जड़ वस्तु छ जे जे आत्माने ए जडपी जेटलो जेटलो आत्मबुद्धिए समागम छे तेटली तेटली जडतानी एटले अबोधतानी ते आत्माने प्राप्ति हाय, एम अनुभव थाय छे आश्चयता छे, पोते जड़ एता चेतनने अचेतन मनावी रह्या छ । चेतन चेतनभाव भूली जई तेने स्वस्व रूप जमाने छ जे पुरुषो ते कमसयोग अने तेना उदये उत्पन्न ययेला पर्यायोने स्वस्वरूप नयी मानता अने पूर्व सयोगो सत्तामा छ, नेने अबध परिणाम भोगवी रह्या छ,