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हे जीव तु भ्रमा मा, तने हित कहु छु अतरमा सुख छ, यहार शोधवाथी मळशे नही
बतरनु सुख अवरनी समश्रेणीमा छे स्थिति थवा माटे बाह्य पदार्पोनु विस्मरण कर, आश्चय भूल । । समश्रेणी रहेवी बहु दुलभ छ, निमित्ताधीन वृत्ति फरी फरी चल्ति पई जशे, न थवा अचळ गभीर उप योग राख
आ क्रम यथायोग्यपणे चाल्यो आयो तो तु जीवन स्याग करतो रहीश, मझाईश नही, निभय थईश
भ्रमा मा तने हित कहु छु। मा मारु छे एवा भावनी व्याख्या प्राये न कर आ तेनु छ एम मानी न बेस ा माटे आम करवु छे, ए भविष्यनिर्णय न करी
रास
__ मा माटे आम न पयु होत तो सुख थात एम स्मरण न कर ___ आटल मा प्रमाणे होय तो सार एम आग्रह न करी राख