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________________ ५७ वचनामृत १ आ तो बखर सिद्धात मानजो के सयोग, वियोग, सुख दुख, ग्वेद, आनद, अणराग, अनुराग इत्यादि योग कोई व्यवस्थित कारणने लईने रह्या छ २ एकात भावी के एकात यायदोषने समान न आपजो ३ कोईनो पण समागम करवा योग्य नथी छता ज्या सुधी तेवी दशा न थाय त्या सुधी सत्पुरुपनो समागम अवश्य सेववो घटे छे ४ जे कृत्यमा परिणामे दुस छे तेने ममान आपता प्रथम विचार करो ५ कोईने अतकरण आपशो नही, आपो तैनाथी भिन्नता राखशो नही, भिन्नता राखो त्या अत करण आप्यु तन माया समान छ ६ एक भोग भोगवे छे छता कमनी वृद्धि नथी फरतो, अने एव भोग नयी भोगवतो छता धमनी वृद्धि परे छ ए आश्चयकारण पण समजवा योग्य मपा छे ७ योगानुयोगे बनेलु कृत्य घड सिद्धिने आपे छे
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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