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ग्रंथकारने, कितना परिश्रम उठाया है, सो वांचनेवाले सुज्ञ जन आपही विचार लेवेगे। इसवास्ते इस ग्रंथ की महिमा लिखनी योग्य नहीं है. क्योंकि, इस ग्रंथमें ज्ञानगुण है तो, वाचकवग आप ही स्तुति -महिमा करेंगे. क्या फूल किसीको कहता है कि, मेरे बीच सुगंध है !
जैसें राज्यमाहल आदिके नाना प्रकारकी जडतसें जडे हुए स्तंभ होते हैं, तैसें इस ग्रंथरूप प्रासादके अनेक प्रकारके ज्ञानगुणादि रत्नोंसें जडे हुए छतीस (३६) स्तंभ है. जिनमें
१. प्रथम स्तंभमें पुस्तकसमालोचना, प्राकृतभाषानिर्णय, और वेदबीजक प्रमुखका वर्णन है.
२. दूसरे स्तंभमें श्रीमद्धेमचंद्राचायकृत महादेवस्तोत्रद्वारा ब्रह्मा विष्णु महादेवके लक्षण, और उनका स्वरूप, तथा लौकिक ब्रह्मादिदेवोंमें यथार्थ देवपणा सिद्ध नहीं होता है, तिसका पुराणादि लौकिक शास्त्रद्वारा स्वरूप वर्णन किया है.
C. ३. तीसरे स्तंभमें यथार्थ ब्रह्मा विष्णु महादेवादिरूप देवमें जो जो अयोग्य बातें हैं, उनका व्यवच्छेदरूप वर्णन श्री हेमचंद्रसूरिकृत द्वात्रिंशिकाद्वारा किया है.
४, ५. चौथे और पांचवें स्तंभमें श्रीमद्धरिभद्रसूरिविरचित लोकतत्त्वनिर्णयका भापासहित अपूर्व स्वरूप लिखा है, जिसमें पक्षपात रहित होकर देवादिकी परीक्षा करनेका उपाय, और अनेक प्रकारकी सृष्टि जे जगद्वासी जीवोंने कल्पन करी है, उसका वर्णन है.
६. छठे स्तंभमें मनुस्मृतिका कथन किया हुवा सृष्टिक्रम, और उसकी समीक्षा है.
७, ८. सातमे आठमे स्तंभमें ऋगादि वेदोंमें जैसें सृष्टिका वर्णन है, तैसे प्रतिपादन करके तिसकी समीक्षा करी है.
९. नवये स्तंभमें वेदके कथनकी परस्पर विरुद्ध ताका दिग्दर्शन है. १०. दशमे स्तंभमें वेदोल वर्णनमेंही वेद ईश्वरोक्त नहीं है, ऐसा सिद्ध किया है.
११. इग्यारहमें स्तंभमें 'ॐभूर्भुवः स्वस्तत्" इत्यादि गायत्री मंत्रके अनेक प्रकारके अर्थ करके, श्रीजैनाचार्योंकी बुद्धिका वैभव दिखाया है.
१२. बारमे स्तंभमें सायणाचार्य शंकराचार्यादिकोंके बनाये गायत्री मंत्रके अर्थोंका समीक्षापूर्वक वर्णन है, तथा वेदका निंदक नास्तिक नही, किंतु वेदका स्थापक नास्तिक है, ऐसा महाभारतादिकोंद्वारा सिद्ध किया है.
१३ से ३१. तेरमे स्तंभसें लेके इकतीसमे स्तंभपर्यंत गृहस्थ के षोडश (१६) संस्का. रेका वर्णन, श्रीवर्द्धमानसूरिकृत आचारदिनकर नामा शास्त्रसे करा है.
३२. बत्तीसमे स्तंभमें जैनमतकी प्राचीनताका, वेदके पाठोंमें गडबड होगई है तिसका। निष्पक्षपाती होने का, और व्याकरणादिकी सिद्धिका, तया पाणिनीकी उत्पत्ति प्रभूतिका वर्णन है.
३३. तेतीसमे स्तंभमें जैनमतकी बौद्धमतसें भिन्नताका, पाश्चात्यविद्वानोंपति हितशिक्षाका, और दिगंबरमति हितशिक्षाका वर्णन है.
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