Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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धवलाके अन्तकी प्रशस्ति
वाणाम्भोधिनभश्शशांकतुलिते जाते शकाब्दे ततो वर्षे शोभकृताहये व्युपनते मासे पुनः श्रावणे । पक्षे कृष्णविपक्षवर्तिनि सिते वारे दशम्यां तिथी
स्वर्यातः शुभचन्द्रदेवगणभृत् सिद्धांतवारांनिधिः ॥ अर्थात् शुभचन्द्रदेवका स्वर्गवास शक संवत् १०४५ श्रावण शुक्ल १० दिन सितवार ( शुक्रवार ) को हुआ। उनकी निषद्या पोय्सल-नरेश विष्णुवर्धनके मंत्री गंगराजने निर्माण कराई थी।
शिमोगसे मिले हुए एक दूसरे शिलालेखमें बन्नियकेरे चैत्यालयके निर्माणका समय शक सं० १०३५ दिया हुआ है और उसमें मन्दिरके लिये भुजबलगंगाडिदेवद्वारा दिये गये दानका भी उल्लेख है । अन्तमें देशीगणके शुभचंद्रदेवकी प्रशंसा भी की गई है। (एपीग्राफिआ कर्नाटिका, जिल्द ८, लेख नं. ९७)
खोज करनेसे धवला प्रतिका दान करनेवाली श्राविका देमियकका पता भी श्रवणबेल्गुलके शिलालेखोंसे चल जाता है । लेख नं० ४६ में शुभचन्द्र मुनिकी जयकारके पश्चात् नागले माताकी सन्तति दंडनायकित्ति लक्कले, देमति और बूचिराजका उल्लेख है और बूचिराजकी प्रशंसाके पश्चात् कहा गया है कि वे शक १०३७ वैशाख सुदि १० आदित्यवारको सर्व परिग्रह त्याग पूर्वक स्वर्गवासी हुए और उन्हींकी स्मृतिमें सेनापति गंगने पाषाण स्तम्भ आरोपित कराया। लेखके अन्तमें ' मूलसंघ देशीगण पुस्तक गच्छके शुभचंद्र सिद्धान्तदेवके शिष्य बूचणकी निषद्या' ऐसा कहा गया है । इस लेखमें जो बूचणकी ज्येष्ठ भगिनी देमतिका उल्लेख आया है, उसका सविस्तर वर्णन लेख नं. ४९ (१२९) में पाया जाता है जो उनके संन्यासमरणकी प्रशस्ति है। यहां उनके नाम-देमति, देमवती, देवमती तथा दोबार देमियक दिये गये हैं और उन्हें मूलसंघ देशीगण पुस्तक गच्छके शुभचन्द्र सिद्धान्तदेवकी शिष्या तथा श्रेष्ठिराज चामुण्डकी पत्नी कहा है। उनकी धर्मबुद्धिकी प्रशंसा तो लेखमें खूब ही की गई है। उन्हें शासन देवताका आकार कहा है, तथा उनके आहार, अभय, औषध और शास्त्रदानकी स्तुति की गई है। उस लेखके कुछ पद्य इस प्रकार हैं:
आहारं ब्रिजगज नाय विभयं भीताय दिव्यौषधं, व्याधिव्यापदपेतदीनमुखिने श्रोत्रे च शास्त्रागमम् । एवं देवमतिस्सदेव ददती प्रप्रक्षये स्वायुषामहदेवमतिं विधाय विधिना दिव्या वधूः प्रोदभूत् ॥ ४ ॥
आसीत्परक्षोभकरप्रतापाशेषावनीपाल कृतादरस्य । चामुण्डनान्नो वणिजः प्रिया स्त्री मुख्या सती या भुवि देमतीति ॥ ५॥
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