Book Title: Shaddarshan Samucchaya Part 02
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashak

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Page 22
________________ षड्दर्शन समुच्चय, भाग-२ (१९-६१९) प्र. नं.. १०५७ १०५७ १०५८ १०५८ १०५९ १०५९ १०६० १०६१ १०६२ १०६३ १०६४ १०६५ १०६६ १०६७ क्रम विषय श्लोक नं. पृ. नं. | क्रम विषय श्लोक नं. ५१९ संवर का स्वरुप और उसके ५७ प्रकार १०३७ उसके पेटा भेद ५२० पाँच समिति १०३७ (९) अल्प-बहत्व द्वार - तीन गुप्ति १०३७ | ५२८ नवतत्त्व को जानने का प्रयोजन - २२ परिषह १०३८ | ५२९ सम्यक्त्व मिलने से होनेवाला लाभ - दस यतिधर्म १०४० | ५३० पुद्गल परावर्तन क्या है ? - बारह भावना १०४१ ५३१ सूक्ष्म क्षेत्रपुद्गल परावर्त का स्वरूप - पाँच चारित्र १०४२ ५३२ सिद्ध के १५ भेद ५२१ निर्जरा तत्त्व और उसका स्वरुप १०४४ ५३३ परिशिष्ट-२ स्याद्वाद - छ: प्रकार का बाह्यतप १०४४ - छ: प्रकार का अभ्यंतर तप १०४५ ५३४ परिशिष्ट-३ नयवाद - १० प्रकार का प्रायश्चित्त |५३५ नय का सामान्यलक्षण -७ प्रकार का विनय १०४५ - नयवाक्य का लक्षण - १० प्रकार से वैयावृत्य १०४६ - प्रमाणवाक्य का लक्षण - ५ प्रकार से स्वाध्याय १०४६ - सकलादेश का स्वरुप - ध्यान के चार प्रकार १०४६ -विकलादेश का स्वरुप - कायोत्सर्ग १०४८५३६ नय का विशेष स्वरुप ५२२ बन्ध तत्त्व और उसके चार भेद १०४८ ५३७नय के मुख्यभेद - कर्म के स्वभाव १०४९ |५३८ द्रव्यार्थिक नय का लक्षण ५२३ मोक्ष तत्त्व और उसका स्वरुप १०५० | ५३९ पर्यायार्थिक नय का लक्षण - सत्पद प्ररुपणा १०५० - चौद मूल मार्गणायें और उसके ६२ भेदों |५४० द्रव्य का लक्षण के संक्षिप्त अर्थ |५४१ द्रव्य के छ: प्रकार - गति मार्गणा १०५१ |५४२ द्रव्य का स्वाभाविक एवं - जाति-काय-योग-वेद-कषाय-ज्ञान मार्गणायें १०५१ | वैभाविक पर्याय - संयम-दर्शन-लेश्या मार्गणायें |५४३ द्रव्य का सामान्य एवं विशेष स्वभाव - भव्य-सम्यक्त्व-संज्ञी - आहारी मार्गणायें १०५३ ५४४द्रव्य के दस सामान्य गुण एवं ५२४ मार्गणाओं में मोक्ष की प्ररुपणा १०५४ सोलह विशेषगण ५२५ (२-३) द्रव्य प्रमाण और क्षेत्र अनुयोगद्वार १०५५ ५४५ द्रव्यार्थिक नय के प्रकार ५२६ (४-५-६) स्पर्शना, काल और अन्तर |५४६पर्यायार्थिक नय के प्रकार ___अनुयोगद्वार १०५५ ५४७ नय के सात प्रकार ५२७ (७-८) भाग और भाव अनुयोगद्वार १०५६ |५४८(१) नैगमनय का स्वरूप - औपशमिकादि पाँच भाव और - नैगमनय की मान्यता १०६७ १०६९ १०७० १०७० १०७० १०७१ १०५१ १०७१ १०७२ १०७२ १०७३ । अन्तर १०७४ १०७४ १०७४ १०७८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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