Book Title: Shaddarshan Samucchaya Part 02
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashak

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Page 21
________________ षड्दर्शन समुच्चय, भाग-२ (१८-६१८) १०१९ क्रम विषय श्लोक नं. प्र. नं. क्रम विषय श्लोक नं. प्र. नं.. ४६९ वेदांत दर्शन की आंशिक रुपरेखा (६७) ९७२ | ४९४ काम यही परम धर्म (८६) १००८ ४७० मीमांसकदर्शन में देव का अभाव (६८) ९७३ | ४९५ चार्वाकमत का उपसंहार (८७) १००९ ४७१ अतीन्द्रियपदार्थो का ज्ञान वेदवाक्य से(६९) ९७६ भाग-२, परिशिष्ट विभाग ४७२ वेदवाक्य की दृढता-वेद पाठ के परिशिष्ट-१ - जैनदर्शन का विशेषार्थ उपर भार (७०) ९७८ | ४९६ जैनदर्शन का विशेषार्थः १०१२ ४७३धर्म का लक्षण ४९७ जीव के चौदह प्रकार और उसका स्वरुप १०१२ ४७४प्रमाण का सामान्य लक्षण (७१) |४९८ जीव के लक्षण ४७५ प्रमाण की संख्या | ज्ञान-दर्शन-चरित्र-तप-वीर्य-उपयोग १०१३ ४७६प्रत्यक्ष प्रमाण का लक्षण (७३) ९८३ | ४९९ संसारी जीवो की पर्याप्तियाँ १०१६ ४७७अनुमान प्रमाण का लक्षण (७४) |५०० पर्याप्ति के ४ भेद १०१६ ४७८शाब्द-उपमान प्रमाण का लक्षण (७४) |५०१ १० प्राण १०१८ ४७९ अर्थापत्ति प्रमाण का लक्षण (७५) ९८७ ५०२ अजीव के चौदह भेद ४८० अभाव प्रमाण का स्वरुप (७६) २९० ५०३ पांच अजीव और उसके स्वभाव ९९० १०२१ ४८१ अभाव प्रमाण के तीन रुप (७६) ९९१ ५०४ द्रव्यो में द्रव्यादि छ संख्या गिणा १०२२ ४८२ अभाव के चार प्रकार (७६) | ५०५ पुद्गल के शब्दादि परिणाम १०२२ ४८३ मूलग्रंथकार के द्वारा नहीं कहा | ५०६ शब्द-अंधकार आदि की पुद्गल रुपता १०२३ गया कुछ विशेष ५०७ पुद्गल के स्वाभाविक और (७६) वैभाविक परिणाम १०२४ ४८४मीमांसक मत का उपसंहार ५०८ काल का स्वरुप १०२४ ४८५ मतांतर से पांच आस्तिकदर्शन (७८) ९९७ ५०९ काल का विशेष स्वरुप १०२४ ४८६ मतांतर से छ: दर्शन (७९) ९९ - व्यवहारकाल १०२४ लोकायत दर्शन - निश्चयकाल १०२४ ४८७ नास्तिक का स्वरूप (७९) ९९८ | ५१० छ: द्रव्यो का विशेष विचार १०२७ ४८८ नास्तिक मत में जीवादि का निषेध (८०) ९९९ | ५११ पुण्य तत्त्व १०२८ ४८९ प्रत्यक्ष विषय ही वस्तु (८१) १००० | ५१२ पुण्य के ४२ प्रकार १०२९ ४९० परोक्ष के विषय में स्त्री को ५१३ पाप तत्त्व और उसके ८२ भेद १०३१ पति का उपदेश | ५१४ आश्रव तत्त्व और उसके ४२ प्रकार १०३३ ४९१ प्रमेय और प्रमाण (८३) | ५१५ पाँच - इन्द्रियाँ १०३३ ४९२ चारभूत से देह की उत्पत्ति-देह ५१६ चार कषाय १०३३ में चैतन्य की उत्पत्ति (८४) १००६ | ५१७ पाँच अव्रत १०३३ ४९३ परोक्ष अर्थ में प्रवृत्ति का निषेध (८५) १००८ | ५१८ २५ क्रिया १०३४ द्वार (७७) الله الله الله الله الله الله الله الله Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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