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-g. अथं श्री संघपट्टकः
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अर्थः-वली ते मेघपक्ति केवी के ? तो के जेना जलमां कालियनामे नाग रह्यो तेना मस्तकमा रन रह्यो डे तेनी कांतिवमे व्याप्त थएली ने वायुवमेजबलता तरंगना कोलाहल शब्दवमेश्राकुल व्याकुल एवी जुमनां नामे नदी होयने शुं? कवितामा जुमना नदी-जल कालु वर्णन थाय तेमां कालिय नामे मोटो मणिधर नाग परिवार सहित रह्यो तो तेने कृष्ण वासुदेवे समुअमां काडी मुक्यो शाथी के तेना जेरथी ते नदीन कालु पाणी लोक पान करीने मरण पामता हता. ते कथा पुराणमां प्रसिद्ध है, माटे मेघमाला पण एम जणाती एवी. ॥ ३ ॥
टीकाः-उद्यत्सौदामनीदामकाम संवखितबिः ॥ कुन्यदजोनिधिध्वानगंजीरध्वनिराखुरा ॥ ४ ॥ . . अर्थः वली ते मेघपंक्ति केवी ने तो के उत्पन्न थता जे वीजलीना ऊबकारा तेणे करीने अति व्याप्त थइ बबी जेनी, श्रने क्षोल पामता समुनना शब्द सरखा गंजीर शब्दवमे व्याप्त एवी ॥ ३॥
टीकाः-आशानितंबिनीवक्त्र बिंबनीलांबरश्रियम् ॥ संदधानाम्बरं तेन तेने कादंबिनी ततः ॥ ५ ॥
अर्थः-वली ते मेघपंक्ति केवी तो के दिशारूपी स्त्रीयो मुख ढांकवानुं काढुं वस्त्र तेनी शोलाने धारण करती एवी मेघपंक्ति ते देवे विस्तारी ॥ ५ ॥
टोका-अस्ततंबास्ततः सांजाजगवन्मस्तकोपरि -॥-निपेतुः सलिलासारा नाराचा-श्व दुःसहाः ॥ १६ ॥