Book Title: Samyaktva Parakram 03
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 11
________________ इक्कीसवां बोल-५ लोग कौवा बनकर आते हैं । इस विचार से वह कौवो को भोजन खिला रहा था । कौवे भोजन करने लगे । उस ब्राह्मण की स्त्री भोजन की सामग्री बचाना चाहती थी, अत कौवो को देखकर वह भय करने लगो। वह ब्राह्मणपत्नी भोजन-सामग्री बचाने के लिए ही ऐसा भय प्रदर्शित करने लगो, मानो कौवो से डरती हो। राजा ने उस ब्राह्मणी को इस प्रकार दिनदहाडे कौवो से भयभीत होते देखकर विचार किया--जो स्त्री दिन के समय कौवो से डरती है, देखना चाहिए उसका चरित्र कैसा है। इस प्रकार विचार कर राजा छिपे वेश मे उस स्त्री के चरित्र का पता लगने लगा ।। ब्राह्मण जब कौवो को भोजन खिला रहा था तब उसकी पत्नी कहने लगी - मुझ कौवो का डर लगता है ' इतना कहकर वह कापने लगी । स्त्री को कापते देखकर उसके पति ने कहा - 'अगर तुझे इतना डर लगता है तो मैं कौवो को खिलाना ही बन्द कर देता हूं।' इस तरह उस ब्राह्मणी की सुराद पूरी हुई । अर्थात् भोजन-मामग्री बचा लेने के लिए उसने जो युक्ति रची थी, वह सफल हुई। रात्रि का समय हुआ । ब्राह्मणी ने बची हुई भोजनसामग्री एक डिब्बे मे बन्द की और डिब्बा सिर पर रखकर रवाना हुई । उसका कोई जार पति नदी के दूसरे किनारे रहता था । ब्राह्मणी अपने जार के पास जाना चाहती थी मगर बीच मे नदी आती थी और नदी मे ग्राह-मगर आदि जन्तुओ का भय था । उस स्त्री ने साथ लाई हुई भोजनसामग्री एक ओर नदी मे फैक दी । ग्राह, मगर आदि जतु

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