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४-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
पान सड़े घोड़ा अड़े, विद्या वीसर जाय । तवा पर रोटी जले, कह चेला किण काय ॥
इन प्रश्नों के उत्तर मे चेला ने कहा - 'न फेरने से।' अर्थात्-पान फेरा न जाये तो वह सड जाता है, घोडा न फिराया जाये तो वह अडियल हो जाता है, विद्या न फेरी जाये अर्थात् विद्या की आवृत्ति न की जाये तो वह विस्मृत हो जाती है और यदि तवा पर डाली हुई रोटी न फिराई जाये तो वह जल जाती है । इस प्रकार सब वस्तुओ को फेरने की आवश्यकता रहती है । वास्तव में यह अखिल ससार ही परिवर्तनशील है । ससार का परिवर्तन न हो तो संसार का अस्तित्व भी न रहे । बालक जन्म लेने के बाद यदि बालक ही बना रहे, उसकी उम्र मे तनिक भी परिवर्तन न हो तो जीवन की मर्यादा कैसे कायम रह सकती है ? अतएव प्रत्येक वस्तु मे परिवर्तन होते ही रहना चाहिए। सूत्र की आवृत्ति करते रहने से व्यंजनो की प्राप्ति होती है, विस्मृत व्यजन याद आ जाते हैं और पदानुसारिणी लब्धि उत्पन्न होने से, अक्षर से शब्द, शब्द से वाक्य और वाक्य से दूसरा वाक्य बनाने की शक्ति उत्पन्न होती है । एक वाक्य सुनकर दूमरा वाक्य और पद सुनकर दूसरा पद किम प्रकार बनाया जाता है, यह समझने के लिए एक उदाहरण उपयोगी होगा--
एक वार राजा भोज ने एक आश्चर्यजनक घटना देखी । उसने देखा --एक ब्राह्मण के घर उसके पिता आदि का श्राद्ध होने के कारण, उसने श्राद्ध के योग्य भोजनसामग्री तैयार कराई । उस ब्राह्मण की ऐसी मान्यता थी कि पूवर्ज