Book Title: Samyaktva Parakram 03
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ २-सम्यक्त्वपराक्रम (३) व्याख्यान सूत्रों की वाचना लेने के पश्चात् प्रतिपृच्छना द्वारा सूत्र और अर्थ को असदिग्ध बना लिया जाता है । मूल सूत्र और अर्थ की बार-बार आवृत्ति न की जाये अर्थात् उन्हे पुन -पुनः फेरा न जाये तो सूत्र और अर्थ का विस्मरण हो जाता है । अतएव सूत्र और अर्थ की प्रावृत्ति करते रहना चाहिए । यहा भगवान् से यह प्रश्न किया गया है कि सूत्र. अर्थ की यावृत्ति करने से जीवात्मा को क्या लाभ होता है? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान ने कहा है--- सूत्र और अर्थ की आवृत्ति करने से व्यजनो का लाभ होता है अर्थात् भूले हए व्यजन याद आ जाते हैं और साथ ही साथ पदा. नुसारी लधि भी प्राप्त होती है । जैसे दीपक पदार्थ को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार व्यजन भी भाव-पदार्थ को प्रकाशित करता है । व्यजन व्यजक अर्थात् प्रकाशक है । जैसे अधकार में रखी हुई वस्तु प्रकाश के अभाव मे दृष्टिगोचर नही होती उसी प्रकार आत्मा व्यजनो के ज्ञान के अभाव मे वस्तु का ज्ञान प्राप्त नही कर सकता । व्यजनो का ज्ञान होने से आत्मा अनेक बाते जान सकता है। यह कहावत तो प्रचलित ही है कि पढे. गुने के चार पाखें होती है, अर्थात उसके दो चर्मचक्षु तो होते ही हैं, पर पढने लिखने से हृदय के नेत्र भी खुल जाते है। हिन्दू शास्त्रो मे महादेव को त्रिनेत्र अर्थात् तीन आंखो वाला बतलाया है। दो आखें तो सभी के होती हैं, मगर तीसरी आख जिमे प्राप्त होती है, वह महादेव बन जाता है । महादेव की तीन आँखो की कल्पना क्यो की गई

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 259