Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग-3
है, निकट में सम्यग्दर्शन प्राप्त करने की जिसकी तैयारी है और उसके लिये स्वभाव को लक्ष्य में लेकर उस ओर का जोर कर रहा है - ऐसे जीव की उस दशा को भी अपूर्व गिना है उसे निश्चयनय का पक्ष गिना है । पश्चात् स्वभाव की ओर के जोर के कारण तुरन्त ही उसका विकल्प टूटकर अन्दर उपयोग स्थिर हो जाने पर साक्षात् निश्चयनय होता है, उस समय निर्विकल्पता है । इस निश्चयनय के उपयोग के समय आत्मा के आनन्द के साथ में ज्ञान की एकाकारता होने पर अद्भुत निर्विकल्प आनन्द की अनुभूति होती है... अहो !... निर्विकल्पदशा का वह आनन्द विकल्प को गोचर नहीं है ।
प्रश्न : अनादि के अज्ञानी जीव को सम्यग्दर्शन प्राप्त करने के पहले तो अकेला विकल्प ही होता है न ?
उत्तर : नहीं, अकेला विकल्प नहीं; स्वभाव की ओर ढल रहे जीव को विकल्प होने पर भी, उसी समय आत्मस्वभाव की महिमा का लक्ष्य भी काम करता है और उस लक्ष्य के जोर से ही वह जीव आत्मा की ओर आगे-आगे बढ़ता है; किसी विकल्प के जोर से आगे नहीं बढ़ता है।
अपूर्वभाव से स्वभाव को लक्ष्यगत करके, जिसकी परिणति पहले-पहले ही शुद्धस्वभाव के अनुभव की ओर झुक रही है, उसे सम्यग्दर्शन प्राप्त करने की तैयारी है। (ऐसे जीव की विशिष्ट परिणति का अलौकिक वर्णन करते हुए पूज्य गुरुदेवश्री ने कहा था कि-) स्वभाव को लक्ष्य में लेकर उसके अनुभव का प्रयत्न कर रहे उस जीव को राग तो है परन्तु उसका जोर राग के ऊपर नहीं जाता, उसका जोर तो अन्तरस्वभाव की ओर ही जाता है; इसलिए
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