Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 177
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [161 नव तत्त्व का विचार पञ्चेन्द्रियों का विषय नहीं है। पाँच इन्द्रियों के अवलम्बन से नव तत्त्व का निर्णय नहीं होता; इसलिए नव तत्त्व का विचार करनेवाला जीव, पाँच इन्द्रियों के विषयों से तो परान्मुख हो गया है; यद्यपि अभी मन का अवलम्बन है परन्तु वह जीव मन के अवलम्बन में अटकना नहीं चाहता है; वह तो मन अवलम्बन भी छोड़कर, अभेद आत्मा का अनुभव करना चाहता है। स्वलक्ष्य से राग का नकार और स्वभाव का आदर करनेवाला जो भाव है, वह निमित्त और राग की अपेक्षारहित भाव है। उसमें भेद के अवलम्बन की रुचि छोड़कर अभेदस्वभाव का अनुभव करने की रुचि का जो जोर है, वह निश्चयसम्यग्दर्शन का कारण होता है। वह रुचि अन्तर में तीव्र वैराग्यसहित है। कोई पूछता है कि नव तत्त्व के विचार तो पूर्व में अनन्त बार किये हैं ? तो उससे कहते हैं कि भाई! पूर्व में जो नव तत्त्व के विचार किये हैं, उसकी अपेक्षा यह कोई अलग प्रकार की बात है। पूर्व में नव तत्त्व के विचार किये थे, वे अभेदस्वरूप के लक्ष्य बिना किये थे और यहाँ तो अभेदस्वरूप के लक्ष्यसहित की बात है। पूर्व में अकेले मन के स्थूल विषय से नव तत्त्व के विचार तक तो आत्मा अनन्त बार आया है परन्तु वहाँ से आगे बढ़कर, विकल्प तोड़कर, ध्रुव-चैतन्यतत्त्व में एकपने की श्रद्धा करने की अपूर्व विधि क्या है? - यह नहीं समझा; इसलिए भवभ्रमण खड़ा रहा है परन्तु यहाँ तो ऐसी बात नहीं ली गयी है। यहाँ तो अपूर्व शैली का कथन है कि आत्मा का अनुभव करने के लिए जो जीव नव तत्त्व के विचार तक आया है, वह नव तत्त्व का विकल्प तोड़कर, उसमें Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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