Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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ज्ञान को उर आनो
धन समाज गज बाज राज तो काज न आवे, ज्ञान आपको रूप भये फिर अचल रहावे; तास ज्ञान को कारन स्व- पर विवेक वखानो, कोटि उपाय बनाय भव्य ताको उर आनो । जे पूरब शिव गये, जाहिं, अब आगे जे हैं, सो सब महिमा ज्ञान तनी मुनिनाथ कहे हैं; (पण्डित श्री दौलतरामजी ) सम्यग्ज्ञान की महिमा करके उसे धारण करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए छहढाला में कवि कहते हैं कि धन, समाज, हाथी, घोड़ा, वैभव या राज यह कहीं जीव को काम नहीं आते; सम्यग्ज्ञान ज्योति निजस्वरूप है, वह प्रगट होने पर अचलरूप से जीव के साथ रहता है। स्व पर का भेदज्ञान, वह सम्यग्ज्ञान का कारण है; हे भव्य ! करोड़ों उपाय द्वारा भी ऐसे सम्यग्ज्ञान को अन्तर में प्रगट करो। पूर्व में जो मोक्ष प्राप्त हुए हैं, वर्तमान में पा रहे हैं और भविष्य में प्राप्त करेंगे। वह सब सम्यग्ज्ञान की ही महिमा है - ऐसा मुनिवरों ने कहा है ।
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