Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 233
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [217 लिए निवृत्त हो... निवृत्त होकर, अर्थात् शान्त होकर, निश्चल होकर, एकाग्र होकर, विश्वासी होकर, स्थिर होकर, गुप्त रीति से चुपचाप विनीत होकर, दृढ़ होकर, अन्तर में चैतन्य को देखने का छह महीने तक इसी प्रकार अभ्यास कर... । एक बार छह महीने तक ऐसा अभ्यास करके, तू विश्वास करके देख कि ऐसा करने से तेरे हृदय सरोवर में पुद्गल से भिन्न चैतन्य प्रकाश की प्राप्ति होती है या नहीं ? छह महीने में तो अवश्य प्राप्ति होगी । हे भाई! अपनी बुद्धि से देह और रागादिक को अपना मानकर, उनका तो तूने अनन्त काल से अभ्यास किया है, तथापि चैतन्यविद्या प्राप्त नहीं हुई और तेरा आत्मा अनुभव में नहीं आया तथा तू अज्ञानी ही रहा... इसलिए अब अपनी इस मिथ्याबुद्धि को छोड़कर, जिस प्रकार हम कहते हैं, उस प्रकार अभ्यास कर । ऐसे अभ्यास से छह महीने में तो तुझे अवश्य चैतन्यविद्या प्राप्त होगी.... छह महीने तक लगनपूर्वक अभ्यास करने से तुझे अवश्य आत्मा का अनुभव होगा। भाई ! छह महीना तो हम अधिक से अधिक कहते हैं । यदि तू उत्कृष्ट आत्मलगनपूर्वक प्रयत्न करेगा, तब तो दो घड़ी में ही तुझे आत्मा का अनुभव हो जाएगा। अहा ! देखो तो सही, यह चैतन्य के अनुभव का मार्ग ! कितना सरल और सहज ! चैतन्य का अनुभव, सहज और सरल होने पर भी, दुनिया के व्यर्थ के कोलाहल में जीव रुक गया होने से उसे वह दुर्लभ हो गया है; इसलिए आचार्यदेव विशिष्ट शर्त रखते हैं कि दुनिया का व्यर्थ कोलाहल छोड़कर, चैतन्य के अनुभव का अभ्यास कर... । एक चैतन्यतत्त्व के अतिरिक्त सब भूल जा... इस Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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