Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-3]
तो शरीर और राग को अपना स्वरूप मानकर सोये हुए बाल जीवों
को जगाने के लिये लोरियाँ गाती हैं अरे जीव ! तू जाग । जड़ से और राग से पृथक् पड़कर तेरे चैतन्य के शान्तरस का पान कर... शान्तरस में निमग्न हो ।
[ 215
जैसे बीन के मधुर नाद से सर्प, जहर को भूल जाता है और बीन के नाद में एकाग्र होकर डोल उठता है; उसी प्रकार इस समयसार की वाणीरूप आचार्यदेव की मधुर बीन के नाद से कौन-सा आत्मा नहीं डोलेगा ? चैतन्य के शान्तरस के रणकार सुनकर किस जीव का जहर (मिथ्यात्व) नहीं उतर जायेगा ? और कौन नहीं जागेगा ? सब जागेंगे, सब डोलेंगे। आहा ! आत्मा की अद्भुत बात सुनते हुए असंख्य प्रदेश में झनझनाहट से आत्मार्थी जीव डोल उठता है और चैतन्य के शान्तरस में मग्न होता है ।
देखो ! यह चैतन्य राजा को प्रसन्न करने की भेंट ! ऐसी अन्तर परिणतिरूपी भेंट दिये बिना आत्मराजा किसी प्रकार रीझे, ऐसा नहीं है। परिणति को अन्तर में एकाग्र करने से चैतन्य के असंख्य प्रदेश में शान्तरस का समुद्र उल्लसित होता है, उस शान्तरस में निमग्न होने के लिये सम्पूर्ण जगत के जीवों को आमन्त्रण है । सब आओ... सब आओ! मुझे ऐसा शान्तरस प्रगट हुआ और जगत का कोई जीव रह नहीं जाना चाहिए। •
( समयसार कलश ३२ के प्रवचन में से )
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.