Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 3
क्योंकि इतने सबमें से कोई जीव ऐसा प्रिय हो कि भविष्य का तीर्थङ्कर होनेवाला हो, कोई केवली होनेवाला हो, कोई अल्प काल में मुक्त होनेवाला हो, तो ऐसे धर्मात्मा के पेट में मेरा ग्रास जाये तो मेरा धन्य अवतार! कौन भविष्य में तीर्थङ्कर होनेवाला है, कौन अल्प काल में मुक्ति जानेवाला है, इसका भले पता न हो परन्तु जिमानेवाले का भाव ऐसा होता है कि अल्प काल में मुक्ति जानेवाला कोई धर्मात्मा रह जाना नहीं चाहिए - इसका अर्थ ऐसा है कि जिमानेवाले को धर्म का और मुक्ति का प्रेम है; जिमानेवाले के भाव यदि आत्मभावनापूर्वक यथार्थ हों तो स्वयं को अल्प काल में मुक्ति लेने का भाव है; इसलिए दूसरे धर्मात्माओं के प्रति भाव उछल जाते हैं।
यहाँ, जिसने चैतन्य के शान्तरस का स्वाद चखा है सन्त धर्मात्मा सम्पूर्ण जगत को सामूहिक आमन्त्रण देते हैं शान्तरस का स्वाद चखे बिना कोई जीव नहीं रह जाना चाहिए; सम्पूर्ण जगत एकसाथ आकर इस शान्तरस का आस्वादन करो... इसमें निमग्न होओ- इसमें वस्तुतः तो स्वयं को ही भगवान
ऐसे
• यह
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आत्मा के शान्तरस में डूब जाने की तीव्र भावना प्रस्फुटित हुई है। अहो! समयसार की एक - एक गाथा में आचार्यदेव ने अद्भुत रचना की है, अलौकिक भाव भरे हैं; क्या कहें ? जिसे समझ में आये, उसे पता पड़ता है।
देहरूप गोद में प्रभु चैतन्य बालभाव से सो रहा है। प्रवचन माता चैतन्य की लोरियाँ गाकर उसे जगाती हैं । लौकिक माता तो बालक को सुलाने के लिये लोरियाँ गाती हैं और यह प्रवचनमाता
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