Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 228
________________ 212] www.vitragvani.com आमन्त्रण [ सम्यग्दर्शन : भाग-3 अपने अन्तर में अपूर्व अतीन्द्रिय शान्तरस का अनुभव करके, सन्त-धर्मात्मा आमन्त्रण देते हैं... किसे आमन्त्रण देते हैं ? सम्पूर्ण जगत को आमन्त्रण देते हैं... किसका आमन्त्रण देते हैं ? शान्तरस का स्वाद लेने का। अपने अन्दर में शान्तरस का समुद्र उल्लसित हो रहा है, उसके अनुभवपूर्वक धर्मात्मा-सन्त, जगत के समस्त जीवों को आमन्त्रण देते हैं कि हे जगत के जीवो! आओ... आओ... यहाँ भगवान ज्ञानसमुद्र में शान्तरस उछल रहा है... उसमें मग्न होकर उसका अनुभव करो। दूध-पाक - जामुन इत्यादि का रस तो जड़ है, उसके अनुभव में तो अशान्ति है और वह तो अनन्त बार भोगी जा चुकी झूठन है । आहा... हा... ! ....इसलिए ऐसे जड़ के स्वाद की रुचि छोड़ो... और इस चैतन्य के शान्तरस को आस्वादो। यह शान्तरस का समुद्र इतना अधिक उल्लसित हुआ है कि सम्पूर्ण लोक को अपने में डुबो ले... इसलिए जगत के समस्त जीव एकसाथ आकर इस शान्तरस में निमग्न होओ... समस्त जीव आओ... कोई बाकी रहो नहीं इस प्रकार सम्पूर्ण जगत को आमन्त्रण देकर वास्तव में तो धर्मात्मा स्वयं की शान्तरस में लीन होने की भावना को ही मथता है । मज्जंतु निर्भरममी सममेव लोका आलोकमुच्छलति शांतरसे समस्ताः । आप्लाव्य विभ्रमतिरस्करिणीं भरेण प्रोन्मग्न एष भगवान अवबोधसिंधुः ॥३२॥ Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

Loading...

Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239