Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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यह बात सरल है क्योंकि तेरे स्वभाव की है और तुझसे हो सके ऐसी है तथा ऐसा करने में ही तेरा हित है... इसलिए सर्व प्रकार के उद्यम से तू ऐसे चैतन्य का अनुभव कर - ऐसा सन्तों का उपदेश है।
सन्तों के प्रताप से.... बन्धन में सुख नहीं; मोक्ष में सुख है। बन्धन से छुटकारे का अवसर आने पर हर्ष से बछड़े जैसा प्राणी भी उत्साह से उछलकूद करता है । आह! छूटने के अवसर पर, डोर का बच्चा भी हर्ष से नाचता है। तो अरे जीव! अनादि काल के बन्धन से बँधा हुआ तू; सन्त तुझे उस बन्धन में से छूटने का उपाय बतावें और उस बन्धन से छूटने की बात सुनकर तेरा आत्मा हर्ष से उल्लसित न हो - यह कैसे बने? वाह ! सन्तों के प्रताप से मुझे छुटकारे का अवसर आया। इस प्रकार मुमुक्षु का आत्मा, मोक्ष के उपाय के प्रति आनन्द से उल्लसित हो जाता है।
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