Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 226
________________ www.vitragvani.com 210] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 यह चैतन्य भाग लेकर अब तू प्रसन्न हो... आनन्दित हो... तेरे मन का समाधान करके तेरे चैतन्य को आनन्द से भोग... उसके अतीन्द्रिय सुख के स्वाद का अनुभव कर। __अज्ञानी का अज्ञान कैसे मिटे और उसे चैतन्य के सुख का अनुभव कैसे हो? – इसके लिये आचार्यदेव उपदेश देते हैं। कड़क सम्बोधन करके नहीं कहते परन्तु कोमल सम्बोधन करके कहते हैं कि हे वत्स! क्या इस जड़ देह के साथ एकमेकपना तुझे शोभा देता है ? नहीं, नहीं; तू तो चैतन्य है... इसलिए जड़ से पृथक् हो... उसका पड़ोसी होकर, उससे भिन्न तेरे चैतन्य को देख। दुनिया की दरकार छोड़कर तेरे चैतन्य को देख! यदि तू दुनिया की अनुकूलता या प्रतिकूलता देखने में रुकेगा तो तेरे चैतन्य भगवान को तू नहीं देख सकेगा। इसलिए दुनिया का लक्ष्य छोड़कर, उससे अकेला पड़कर, अन्तर में तेरे चैतन्य को देख... अन्तर्मुख होते ही तुझे पता पड़ेगा कि चैतन्य का कैसा अद्भुत विलास है! हे बन्धु! तू चौरासी के अवताररूपी कुएँ में पड़ा है; उसमें से बाहर निकलने के लिये जगत के चाहे जितने परीषह या उपसर्ग आवें, मरण जितने कष्ट आवें, तथापि उनकी दरकार छोड़कर तेरे चैतन्य दल को देख । देह या शुभाशुभभाव मेरे स्वघर की चीज नहीं है परन्तु वे तो मेरे पड़ोसी हैं। वे मेरे समीप में रहनेवाले हैं परन्तु मेरे साथ एकमेक होकर रहनेवाले नहीं हैं; इस प्रकार एक बार उनका पड़ोसी होकर पृथक् आत्मा का अनुभव कर, दो घड़ी तो तू ऐसा करके देख! दो घड़ी में ही तुझे तेरे चैतन्य का अपूर्व विलास दिखायी देगा। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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