Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 3
में भङ्ग पड़ता है; उसी प्रकार यदि कर्म के साथ के सम्बन्ध के लक्ष्य से जीव का विचार करो तो नव तत्त्व के भेद विचार में आते हैं परन्तु उस निमित्त का लक्ष्य छोड़कर अकेले चैतन्य प्रवाह को ही दृष्टि में लो तो उसमें भङ्ग-भेद नहीं पड़ते हैं, वह एक ही प्रकार का अनुभव में आता है ।
जैसे, अकेले पानी में मीठा - खट्टा अथवा खारा - ऐसे भेद नहीं पड़ते । मीठे, खट्टे अथवा खारेरूप जो भेद पड़ते हैं, वह शक्कर, नींबू अथवा नमक इत्यादि परनिमित्त के सङ्ग की अपेक्षा से पड़ते हैं। निमित्त के सङ्ग की अपेक्षा से देखने पर पानी में वे भेद भूतार्थ हैं परन्तु अकेले पानी के स्वभाव को देखने पर उसमें मीठा, खट्टा अथवा खारा आदि भेद नहीं पड़ते; इसलिए वे भेद अभूतार्थ हैं । इसी प्रकार आत्मा को अकेले स्वभाव से देखने पर तो उसमें भेद नहीं हैं परन्तु जड़कर्म के संयोग की अपेक्षा से देखने पर आत्मा की पर्याय में बन्ध - मोक्ष इत्यादि सात प्रकार पड़ते हैं। पर्यायदृष्टि से वे भेद भूतार्थ हैं और यदि अकेले आत्मा के त्रिकाली स्वभाव की दृष्टि से अनुभव किया जाए तो उसमें बन्ध-मोक्ष इत्यादि सात प्रकार नहीं पड़ते हैं; इसलिए वे अभूतार्थ हैं। इस प्रकार स्वभावदृष्टि से तो नव तत्त्वों में एक भूतार्थ जीव ही प्रकाशमान है, उसमें एक अभेद जीव का ही अनुभव है और वही परमार्थ सम्यग्दर्शन का विषय है ।
भाई! यह समझे बिना जीव ने अनन्त काल में जो कुछ किया है, उससे संसार-परिभ्रमण ही हुआ है और एक भी भव कम नहीं हुआ है। यह अपूर्व समझ करना ही भव - भ्रमण से बचने का एकमात्र उपाय है।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.