Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग-3
भगवती प्रज्ञा
(भेदज्ञान की विधि और मोक्ष का उपाय दर्शानेवाला अद्भुत प्रवचन) मोक्षार्थी को प्रथम तो यह बात अपने अन्तर में मजबूत करनी चाहिए कि मेरे मोक्ष का साधन मुझमें ही है, मेरे ज्ञान को जितना अन्तर्मुख एकाग्र करूँ, उतना मेरा मोक्ष का साधन है; इसके अतिरिक्त जितनी बहिर्मुखवृत्ति हो, वह मोक्ष का साधन नहीं है - ऐसे निर्णय के जोर से अन्तर्मुख परिणमन होता है परन्तु जो राग को ही मोक्ष का साधन मानता है, उसे राग से पृथक परिणमन नहीं होता, वह तो राग के साथ उपयोग को एकमेक करके बँधता ही है। जैसे आत्मा का मोक्षरूपी कार्य, आत्मा से पृथक् नहीं है; उसी प्रकार उसका साधन भी आत्मा से पृथक् नहीं है, वह साधन 'भगवती प्रज्ञा' ही है ।
आत्मा को और राग को निकटता है परन्तु एकता नहीं; दोनों के लक्षण भिन्न हैं । भगवती प्रज्ञा को और आत्मा को तो एकता है । आत्मा और बन्ध दोनों के भिन्न-भिन्न लक्षणों को जानकर, भगवती प्रज्ञा उन्हें छेद डालती है; उन दोनों को पृथक् करके प्रज्ञा, आत्मा के साथ तो एकता करके उसमें लीन होती है और बन्ध को अपने से पृथक् ही रखती है। ऐसा भेदज्ञान करनेवाली भगवती प्रज्ञा ही मोक्ष का साधन है, उस प्रज्ञा द्वारा ही आत्मा को बन्धन से भिन्न किया जा सकता है ।
अन्तर में भेदज्ञान का प्रयत्न करनेवाला जिज्ञासु शिष्य पुनः पूछता है कि प्रभो ! आपने आत्मा और बन्ध को प्रज्ञाछैनी द्वारा पृथक् करने को कहा परन्तु ज्ञान को और बन्ध को चेतक
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
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