Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 219
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [203 आत्मा और बन्ध को पृथक् करके मोक्ष को साधनेवाली | भगवती प्रज्ञा ___ जिसके अन्तर में भेदज्ञान की चटपटी हुई है – ऐसे मोक्षार्थी शिष्य ने पूछा था कि हे प्रभु! प्रज्ञा ही मोक्ष का साधन है – ऐसा आपने समझाया तो उस प्रज्ञा द्वारा वास्तव में किस प्रकार आत्मा और बन्ध को पृथक् किया जा सकता है? उसके उत्तर में आचार्यदेव ने भेदज्ञान की अलौकिक बात (गाथा २९४ वें में) समझायी; आत्मा का लक्षण ज्ञान और बन्ध का लक्षण राग - इन दोनों को स्पष्टरूप से भिन्न बतलाया; इस प्रकार आत्मा और बन्ध दोनों को अत्यन्त पृथक् करनेवाली भगवती प्रज्ञा ही मोक्ष का साधन है। इस प्रकार भगवती प्रज्ञा को ही मोक्ष के साधन के रूप में वर्णन करके, अब आचार्यदेव उसके ऊपर अलौकिक कलश चढ़ाते हैं; इस १८१वें कलश में तीक्ष्ण प्रज्ञाछैनी किस प्रकार आत्मा और बन्ध को अत्यन्त पृथक् कर डालती है, उसके पुरुषार्थ का अद्भुत वर्णन किया है। भेदज्ञान के वर्णन का यह श्लोक बहुत सरस है, इसमें भेदज्ञान की अलौकिक विधि बतायी है। प्रवीण पुरुष, अर्थात् विचक्षण बुद्धिवाले आत्मार्थी जीव, अत्यन्त सावधानी से प्रज्ञाछैनी द्वारा आत्मा और बन्ध को भिन्न-भिन्न कर डालते हैं। अपने सर्व प्रयत्न द्वारा अर्थात् सम्पूर्ण जगत की ओर से पराङ्मुख होकर चैतन्य के सन्मुख ढलने के उद्यम द्वारा अत्यन्त जागृतिपूर्वक आत्मा और बन्ध की सन्धि के बीच प्रज्ञाछैनी पटककर, मुमुक्षु जीव उन्हें पृथक् कर डालते हैं – दोनों को पृथक् करने के लिये दोनों का Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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