Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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मोह को दूर करके, आत्मस्वरूप के सन्मुख होकर वह प्रज्ञाछैनी पटकी जाती है। और
(५) पाँचवाँ (निपतति रभसात् ) वह प्रज्ञाछैनी शीघ्ररूप से पड़ती है।
इस प्रकार पाँच विशेषणों से आचार्यदेव ने भेदज्ञान का अपूर्व पुरुषार्थ दर्शाया है। ऐसे पुरुषार्थ से पटकने में आयी हुई प्रज्ञाछैनी, आत्मा और बन्ध को सर्व ओर से अत्यन्त पृथक् कर डालती है; बन्ध के एक अंश को भी आत्मा में नहीं मिलाती, इस प्रकार बन्ध को सर्व प्रकार से छेदकर आत्मा को मोक्ष प्राप्त करानेवाली इस ‘प्रज्ञा' को आचार्यदेव ने भगवती' कहकर उसकी महिमा की है।
पूर्व में तेईसवें कलश में कहा था कि रे भव्य ! तू किसी भी प्रकार से – मरकर भी, तत्त्व का कौतुहली हो और देह से भिन्न आत्मा का अनुभव कर; इसी प्रकार यहाँ भी कहते हैं कि हे मोक्षार्थी ! तू किसी भी प्रकार से सम्पूर्ण जगत की दरकार छोड़कर भी, इस भगवती प्रज्ञा को अन्तर में पटककर बन्ध को छेद डाल ! 'किसी भी प्रकार से' – ऐसा कहकर, कर्म इत्यादि व्यवधान करेंगे, यह बात उड़ा दी है। कोई कहे - कर्म रोकेंगे तो? – तो आचार्यदेव कहते हैं कि अरे जीव! तू एक बार प्रज्ञाछैनी को हाथ में तो ले... प्रज्ञाछैनी हाथ में लेते ही (अर्थात् ज्ञान को अन्तर्मुख करते ही) कर्म तो कहीं बाहर रह जायेंगे और छिद जायेंगे। यहाँ तो कहते हैं कि कर्म रोकेंगे...' ऐसा याद करे, वह वास्तविक मोक्षार्थी नहीं है। वास्तविक मोक्षार्थी तो उद्यमपूर्वक
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