Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ www.vitragvani.com 190] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 उसके आश्रय से धर्म नहीं होता। आत्मा के स्वभाव का निर्णय कहो या सर्वज्ञ का निर्णय कहो, दोनों एक ही है, क्योंकि आत्मा का स्वभाव है, वही सर्वज्ञ को प्रगट हुआ है और सर्वज्ञ जैसा ही इस आत्मा का स्वभाव है। दोनों में परमार्थ से कुछ भी अन्तर नहीं है; इसलिए आत्मा का पूर्ण स्वभाव पहचानने पर उसमें सर्वज्ञ की पहचान भी आ जाती है और सर्वज्ञ की वास्तविक पहचान करने में आत्मा के स्वभाव की पहचान भी आ जाती है। सर्वज्ञ भगवान ने प्रथम तो अपने पूर्ण ज्ञायकस्वभाव की श्रद्धा की थी, और तत्पश्चात् आत्मा में एकाग्र होकर पूर्ण ज्ञानदशा प्रगट की है। उस ज्ञान द्वारा वे भगवान एक समय में सब कुछ जानते हैं और जानना वह अपना स्वरूप होने से उस पूर्ण ज्ञान के साथ भगवान को पूर्ण स्वाभाविक आनन्द भी है और उन्हें रागादि दोष बिलकुल नहीं है। इस प्रकार जहाँ सर्वज्ञ का यथार्थ निर्णय किया, वहाँ अपने में भी अपने रागरहित ज्ञानस्वभाव का निर्णय हुआ। परिपूर्ण ज्ञान ही मेरा स्वरूप है, इसके अतिरिक्त रागमिश्रित विचार आते हैं, वह मेरा / चैतन्य का वास्तविक स्वरूप नहीं है। वस्तु का स्वभाव परिपूर्ण ही होता है। जैसे, जड़ में अचेतनपना है, उसमें अंशमात्र भी जानपना नहीं है। जड़ का अचेतन स्वभाव है; इसलिए उसमें परिपूर्ण अचेतनपना है और ज्ञान बिलकुल नहीं है। इसी प्रकार आत्मा का स्वभाव, ज्ञान है तो उसमें ज्ञान परिपूर्ण है और अचेतनपना बिलकुल नहीं है। राग भी अचेतन के सम्बन्ध से होता है; इसलिए राग भी ज्ञानस्वभाव में नहीं है। ऐसे ज्ञानस्वभाव का निर्णय और अनुभव करना ही धर्म का प्रारम्भ है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239