Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 204
________________ www.vitragvani.com 188] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 देखो! नव तत्त्वों को अभूतार्थ कहकर यहाँ पर्यायदृष्टि को ही हेय कहा है और अखण्ड चैतन्यतत्त्व सर्व काल अस्खलित है, उसकी दृष्टि करायी है। संवर, निर्जरा अथवा मोक्ष, यह कोई तत्त्व सर्व काल में अस्खलित नहीं है; इसलिए ये सम्यग्दर्शन का विषय नहीं है। सर्व काल में अस्खलित तो एक चैतन्यद्रव्य ही है, वही सम्यग्दर्शन का ध्येय है; इसलिए भूतार्थनय से देखने पर नव तत्त्वों में एक जीव ही प्रकाशमान है, उसके अनुभव से ही सम्यग्दर्शनादि होते हैं । ऐसे भूतार्थरूप शुद्ध आत्मा को ही प्रतीति में लेना, इस गाथा का तात्पर्य है और यही प्रत्येक आत्मा का पहला कर्तव्य है। हे जीव!.... हे जीव! आत्मपिपासु होकर निरन्तर अन्तर प्रयत्न द्वारा ऐसा सम्यग्दर्शन प्रगट कर। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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