Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 201
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [185 विकल्प है; वह परमार्थ जीव नहीं है। पर्याय के लक्ष्य से एक जीवद्रव्य को पर्यायरूप अनुभव किये जाने पर जीव-अजीव, पुण्य-पाप इत्यादि नव तत्त्व भूतार्थ हैं परन्तु जब तक यहाँ तक के विचार में अटका है, वहाँ तक धर्म नहीं है। नव तत्त्व के भेद के विचार छोड़कर अकेले शुद्ध जीव को ही भूतार्थरूप अनुभव करने पर धर्म होता है और मोक्ष का द्वार खुलता है। ___ पहले, जीव-पुद्गल दोनों के बन्धपर्याय की बात की थी, अकेले जीवद्रव्य की अवस्थारूप से देखने पर नव तत्त्व भूतार्थ हैं - ऐसा कहकर अब अन्तरोन्मुख कराते हैं कि सर्व काल में अस्खलित एक जीवद्रव्य के स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर वे नव तत्त्व अभूतार्थ हैं और ज्ञायक एक आत्मा ही भूतार्थ है, यही सम्यग्दर्शन है। ज्ञायकद्रव्य ही त्रिकाली अस्खलित है, निर्मल अवस्था के समय अथवा विकारी अवस्था के समय भी आत्मा का ज्ञायक स्वभाव सदा एकरूप है और सात तत्त्व तो स्खलित हैं, क्षणिक हैं। नव तत्त्व के विकल्प क्षणिक हैं, उन नव तत्त्व के विकल्प छोड़कर एक अखण्डित ज्ञायकस्वभाव की दृष्टि करना, वह मोक्ष का मार्ग है। आत्मा के अखण्डस्वभाव के समीप जाकर; अर्थात्, स्वभावसन्मुख एकाग्र होकर अनुभव करते समय, नव तत्त्व लक्ष्य में नहीं आते; इसलिए वे नव तत्त्व अभूतार्थ हैं। अस्थिरता के समय धर्मी को नव तत्त्व के विकल्प आते हैं तो भी उन पर धर्मी की दृष्टि नहीं होती। उसे उन विकल्पों की मुख्यता नहीं है, अपितु एक चैतन्य की ही मुख्यता है; इसलिए नव तत्त्व अभूतार्थ हैं और Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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