Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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यहाँ जीव की पर्याय में जो सात तत्त्व के भेद पड़ते हैं, उसमें अजीव निमित्त है - ऐसी बात ली गयी है परन्तु अजीव में सात भेद पड़ते हैं, उसमें जीव निमित्त है, यह बात नहीं ली है, क्योंकि एक तो उसमें जीव की अधिकता बतलानी है और दूसरे, जीव को सात तत्त्व के भेद का लक्ष्य छुड़ाकर, स्वभाव की एकता करानी है। अजीव में कोई सात भेद छुड़ाकर एकता कराने का प्रयोजन नहीं है। जीव के द्रव्य-पर्याय दोनों की पहचान करके पर्यायभेद का लक्ष्य छोड़कर, अभेदस्वभाव में ढलना ही प्रयोजन है। यहाँ स्वयं भेद का लक्ष्य छोड़कर, स्वभाव में एकाग्र होने पर अजीव निमित्त का लक्ष्य छूट जाता है और उस समय अजीव में स्वयमेव आस्रव बन्ध के निमित्तरूप परिणमन छूटकर, संवर, निर्जरा, मोक्ष के निमित्तरूप परिणमन होता है।
जिस प्रकार पानी के एक प्रवाह में बीच में सात खम्बेवाला पुल आने पर पानी में सात भङ्ग पड़ जाते हैं, उसमें वह पुल निमित्त है; उसी प्रकार चैतन्यमूर्ति आत्मा का ज्ञानप्रवाह अनादि अनन्त एकरूप है, उसकी क्षणिक अवस्था में अजीव के निमित्त से सात प्रकार पड़ते हैं। उन सात प्रकारों को लक्ष्य में लेकर अनुभव करने पर, एकरूप चैतन्य ज्ञायक आत्मा अनुभव में नहीं आता। अहा! यह तो अन्तर के अनुभव का अपूर्व विषय है !! बाह्य में बुद्धि का विशेष क्षयोपशम हो तो वह इसमें काम आवे - ऐसा नहीं है परन्तु
चैतन्य की रुचि से ज्ञान को अन्तर में झुकाने का अभ्यास करना ही अन्तर के अनुभव का उपाय है। अहो! मैं सम्पूर्ण ज्ञायक हूँ, ज्ञानशक्ति से परिपूर्ण भरा हूँ, बुद्धि
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