Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
170]
[सम्यग्दर्शन : भाग-3
तत्त्वों को जानकर, अन्तरङ्ग में भूतार्थ चैतन्यस्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर सम्यग्दर्शन, सुख-शान्ति, सत्य और आत्मसाक्षात्कार होता है।
नव तत्त्व में पहला जीवतत्त्व कितना है ? सिद्धभगवान के आत्मा जितना। जितना सिद्धभगवान का आत्मा है, उतना ही प्रत्येक आत्मा परिपूर्ण है। 'सिद्ध समान सदा पद मेरो' अर्थात्, मेरा आत्मस्वरूप सदा ही सिद्ध समान है। ऐसा आत्मा, वह सम्यग्दर्शन का विषय है; अर्थात्, सम्यग्दर्शन अपने आत्मा को वैसा स्वीकार करता है।
सम्यग्दर्शन होने पर अपने सिद्धसमान आत्मा का संवेदन होता है, अनुभव होता है। सम्यग्दर्शन का विषय अकेला आत्मा है, नव तत्त्व के भेद, सम्यग्दर्शन का विषय नहीं है। नव तत्त्वों के विचार तो सम्यग्दर्शन के लिए वारदान है। वारदान से माल का अनुमान होता है कि इसे कैसा माल लेना है ?
जिस प्रकार कोई फटा-टूटा काला थैला लेकर बाजार जा रहा हो तो अनुमान होता है कि यह मनुष्य कोई केसर लेने नहीं ला रहा, किन्तु कोयला लेने जा रहा होगा और कोई अच्छी काँच की बरनी लेकर बाजार में जाता हो तो अनुमान होता है कि यह मनुष्य कोयले लेने नहीं जा रहा, किन्तु केसर आदि उत्तम वस्तु लेने जा रहा है। इसी प्रकार जो जीव, कुदेव-कुगुरु का पोषण कर रहा है; अर्थात्, जिसे वारदान के रूप में ही काले थैले के समान कुदेवकुगुरु हैं तो अनुमान होता है कि वह जीव, आत्मा का धर्म लेने के लिए नहीं निकला है परन्तु विषय-कषाय का पोषण करने के लिए
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.