Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 176
________________ www.vitragvani.com 160] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 - ऐसे सात प्रकार अपनी योग्यता से पड़ते हैं तथा अजीवतत्त्व उसमें निमित्तरूप है। अजीव की अवस्था में भी पुण्य-पाप आदि सात प्रकार पड़ते हैं। एक आत्मा ही सर्व व्यापक है और दूसरा सब भ्रम - ऐसा माननेवाले की मान्यता में सात तत्त्व नहीं रहते हैं और सात तत्त्व के ज्ञान बिना आत्मा का ज्ञान नहीं हो सकता है। सातों तत्त्वों में दो -दो बोल लागू पड़ते हैं - एक जीवरूप है दूसरा अजीवरूप है। देखो, आत्मा को समझे बिना जीव का अनन्त काल व्यतीत हुआ है, उस अनन्त काल में दूसरे बाह्य उपायों को कल्याण का साधन माना है परन्तु अन्तर में सिद्ध भगवान जैसा चैतन्यमूर्ति आत्मा विराज रहा है, उसका शरण लूँ तो कल्याण प्रगट होगा - ऐसा नहीं माना है। जीव ने अज्ञानभावसहित पूजा-भक्ति, व्रत-उपवास इत्यादि के शुभराग और क्रियाकाण्ड को मुक्ति का साधन माना है परन्तु वह समस्त राग तो संसार का कारण है; आत्मा की मुक्ति का कारण नहीं है। इस प्रकार समझकर क्या करना चाहिए? यही कि नव तत्त्वों के और आत्मा के अभेदस्वरूप को जानकर, आत्मस्वभाव के सन्मुख होना चाहिए। उसका आश्रय करना ही धर्म है और वही कल्याण है। जो जीव, विषय-कषाय में ही डूबा हुआ है और जिसे तत्त्व के विचार का अवकाश भी नहीं है, वह तो पाप में पड़ा हुआ है, उसकी यहाँ बात नहीं है। मुझे आत्मा का कल्याण करना है, जिसे ऐसी जिज्ञासा जागृत हुई है, विषय-कषायों से कुछ परान्मुख होकर जो नव तत्त्व का विचार करता है और अन्तर में आत्मा का अनुभव करना चाहता है, यह उसकी बात है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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