Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
अनादि से सुनता और आदर करता आया है परन्तु यह चिदानन्द तत्त्व राग से पार है, इसकी बात अपूर्व है।
आत्मा की यह बात अपूर्व है, पात्र होकर जिज्ञासा करे, उसे समझ में आने योग्य है। जिसे प्यास लगी हो, जिसे आत्मा की भूख जागृत हुई हो, उसे यह बात पचे - ऐसी है।
प्रश्न : भेदज्ञान न हुआ हो परन्तु उसका प्रयत्न करता हो तो उसके परिणाम कैसे होते हैं ?
उत्तर : उसके परिणाम में सत्समागम और सत् विचार का घोलन होता है। आत्मा क्या है, सत् क्या है, ज्ञानी कैसे होते हैं - ऐसे प्रकार के तत्त्व के सद् विचार होते हैं; परिणाम में पर की प्रीति का रस अत्यन्त मन्द हो जाता है, सच्चे देव-गुरु का बहुमान जागृत होता है, कुदेव-कुगुरु की ओर का झुकाव छूट जाता है, स्वसन्मुख झुकने जैसा है - ऐसा निर्णय करके बारम्बार उसका अन्तर उद्यम करता है, उसे तीव्र अनीति के या माँसाहार आदि के कलुषित परिणाम छूट ही गये होते हैं, अन्दर में यथार्थ तत्त्व का बारम्बार घोलन करता है – ऐसा जीव अन्तर्मुख होने के बारम्बार के अभ्यास द्वारा भेदज्ञान प्रगट करता है।
प्रश्न : यह आत्मा सर्वज्ञ भगवान जैसा है - वह किस प्रकार?
उत्तर : जैसे सर्वज्ञ भगवान हैं, वैसा मेरा आत्मा है – ऐसा जहाँ निर्णय करने जाये, वहाँ अपनी पर्याय में तो सर्वज्ञपना नहीं, सर्वज्ञपना तो शक्तिस्वभाव में है; इसलिए पर्याय के सन्मुख देखने से सर्वज्ञ जैसा आत्मा नहीं पहचाना जाता परन्तु स्वभावसन्मुख
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.