Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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ऐसे द्रव्य-गुण-पर्यायस्वरूप शुद्ध आत्मा में स्वसन्मुख होना।
देखो, यहाँ अकेले शास्त्र अभ्यास की बात नहीं की है परन्तु भावश्रुत के अवलम्बन द्वारा दृढ़ किये हुए परिणाम से, सम्यक् प्रकार से अभ्यास करने की बात कही है। भावश्रुत तभी होता है कि जब द्रव्यश्रुत के वाच्यरूप शुद्ध आत्मा की ओर ज्ञान का झुकाव होता है। इस प्रकार के दृढ़ अभ्यास से अवश्य सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है।
- ऐसे सम्यक्त्व साधक सन्तों को नमस्कार हो! .
उसका जन्म सफल है मुक्त्वा कायविकारं यः शुद्धात्मानं मुहुर्मुहुः। संभावयति तस्यैव सफलं जन्म संसृतौ॥
(नियमसार कलश ९३) काय विकार को छोड़कर जो बारम्बार शुद्धात्मा की सम्भावना (सम्यक्भावना) करता है, उसका ही जन्म, संसार में सफल है।
पहले तो काया से भिन्न चिदानन्दस्वरूप का भान किया है, तदुपरान्त काया से उपेक्षित होकर बारम्बार अन्तर में शुद्धात्मा के सन्मुख होकर उसकी भावना भाता है, उस धर्मात्मा का अवतार सफल है, उसने जन्मकर आत्मा में मोक्ष की ध्वनि प्रगटायी, आत्मा में मोक्ष की झंकार प्रगट की... इसलिए उसका जन्म सफल है। अज्ञानरूप से तो अनन्त अवतार किये, वे सब निष्फल गये, उनमें आत्मा का कुछ हित नहीं हुआ। चिदानन्दस्वरूप का भान करके जिस अवतार में आत्मा का हित हुआ, वह अवतार सफल है।
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