Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-3]
[91
कारण? संसार की पढ़ाई में और व्यापार-धन्धा इत्यादि में तो बुद्धि को लगाता है और अन्तर-चैतन्य के समझने में बुद्धि को नहीं लगाता तो उसे इसमें अपना हित भासित नहीं हुआ है। यदि वास्तव में ऐसा भासित हो कि चैतन्यतत्त्व की समझ में ही मेरा हित है तो उसमें अपनी बुद्धि लगे बिना रहेगी ही नहीं। अहो! इसमें मेरा कल्याण है, इसमें मेरे प्रयोजन की सिद्धि है; इस प्रकार उसे चैतन्यतत्त्व की महिमा भासित नहीं हुई है। यदि चैतन्य की रुचि हो तो उसमें बुद्धि लगे बिना नहीं रह सकती और यह बात समझ में न आवे - ऐसा भी नहीं हो सकता है। .
( ॐॐ
किसे हर्ष नहीं होगा...... सम्यग्दर्शन!.... अहा जो अपने जीवन का महाकर्तव्य है उसका नाम सुनने पर भी आत्मार्थी को रोम-रोम में कैसा हर्ष जागृत होता है ! सत्य ही है। स्वयं को परम प्रिय वस्तु का वर्णन सुनकर किसे हर्ष नहीं होगा और उसकी अनुभूति की तो क्या बात!!
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.