Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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यदि जीव में विकार की योग्यता न हो तो अजीव उसे विकार नहीं कराता।
जीव की योग्यता से विकार होता है, वह जीवपुण्य-पाप है और उसमें निमित्त अजीव है, वह अजीवपुण्य-पाप है; इस प्रकार जीव और अजीव दोनों का स्वतन्त्र परिणमन है। इसी तरह सातों तत्त्वों में एक जीव और दूसरा अजीव है - ऐसे दो-दो प्रकार यहाँ लेंगे। __जीव और अजीव ये दो तो स्वतन्त्र त्रिकाली तत्त्व हैं और इन दोनों की अवस्था में सात तत्त्वरूप परिणमन किस प्रकार है ? - वह बतलाते हैं। देखो, यह सब भी अभी तो नव तत्त्व की व्यवहारश्रद्धा है। पुण्य और पाप, दोनों विकार हैं। विकारी होने का जीव का त्रिकालीस्वभाव नहीं है परन्तु अवस्था की योग्यता है और उसमें अजीव निमित्त है। जीव में पुण्य-पाप होते हैं, यदि वे अजीव के निमित्त बिना ही होते हों तो वह जीव का स्वभाव ही हो जाएगा और कभी मिटेगा ही नहीं। इसी प्रकार यदि निमित्त के कारण विकार होता हो तो जीव की वर्तमान अवस्था की योग्यता स्वतन्त्र नहीं रहेगी और जीव उस विकार का अभाव नहीं कर सकेगा; इसलिए यहाँ उपादान-निमित्त दोनों की एक साथ पहचान कराते हैं।
जैसे, कम-ज्यादा पानी के संयोगरूप निमित्त के बिना अकेले आटे में यह रोटी का आटा, यह पूड़ी का आटा अथवा यह भाखरी का आटा है' - ऐसे भेद नहीं पड़ते। वहाँ आटे की वैसी योग्यता है और उसमें पानी का निमित्त भी है। इसी प्रकार चैतन्य भगवान
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