Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-3
धर्म का मार्ग तो अन्दर की परमार्थश्रद्धा में है, उसकी तो बात ही क्या है?
जीव और अजीव की प्रति समय की स्वतन्त्रता स्वीकार करके सात तत्त्वों को जाननेवाले को तो व्यवहार सम्यग्दर्शन हुआ और विकल्परहित होकर अन्तर में अभेद चैतन्यतत्त्व का अनुभव और प्रतीति करे, तब परमार्थ सम्यग्दर्शन होता है; वही आत्मार्थी जीव का पहला कर्तव्य है।
ऐसी स्थिति में कब होयेंगे! भाई! पर की भावना करने में तो तेरा अनन्त काल व्यतीत हो गया है। अब तेरे चैतन्य की महिमा जानकर उसकी भावना तो कर। उसकी भावना से तेरे भव का अन्त आयेगा। अहो! ऐसी भावना भा कर जंगल में जाकर ध्यान करें और ऐसे लीन होवें कि स्थिर बिम्ब देखकर शरीर के साथ जंगल के खरगोश और हिरण भ्रम से (वृक्ष समझकर) अपना शरीर घिसते हों - ऐसी स्थिति में कब होयेंगे!
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.