Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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___ जैसे, माता-पिता को हँसता देखकर कोई बालक भी साथ ही हँसने लगता है परन्तु वे किसलिए हँसते हैं ? इसका उसे पता नहीं है। इसी प्रकार ज्ञानी, आत्मा के सत् स्वभाव की अपूर्व बात करते हैं। वहाँ उसे समझकर उसकी हाँ करके जो उत्साह बताता है, वह तो आत्मा का अपूर्व लाभ प्राप्त करता है और कितने ही जीव यह बात समझे बिना उत्साह बताते हैं; ज्ञानी कुछ आत्मा की अच्छी बात कहते हैं - ऐसा विचार कर हाँ करके मान लेते हैं परन्तु उसका भाव क्या है ? - वह स्वयं अन्तर में नहीं समझे तो उसे आत्मा की समझ का यथार्थ लाभ नहीं होता; मात्र पुण्य बँधकर छूट जाता है। अन्तर में स्वयं तत्त्व का निर्णय करे, उसी की वास्तविक कीमत है। स्वयं तत्त्व का निर्णय किये बिना हाँ करेगा तो वह टिकेगी नहीं।
प्रश्न - पर्यायदृष्टि से नव तत्त्व जानना व्यवहार है, उनसे अभेद आत्मा की श्रद्धा का लाभ नहीं होता; इसलिए उसमें उत्साह कैसे आयेगा?
उत्तर - व्यवहार का उत्साह करने को कौन कहते हैं ? परन्तु जिसे अभेद आत्मा के अनुभव का उत्साह है, उसे बीच में नव तत्त्व की व्यवहारश्रद्धा आ जाती है। अभेदस्वभाव के लक्ष्य की
ओर ढलने में प्रथम आँगनरूप में मिथ्या तत्त्व की मान्यता छोड़कर सच्चे नव तत्त्व का निर्णय करने में उत्साह आये बिना नहीं रहता, परन्तु नव तत्त्व के विकल्प की प्रधानता नहीं है, अपितु अभेद स्वभाव का लक्ष्य करने की प्रधानता है; उसका ही उत्साह है। नव तत्त्व का निर्णय भी कुतत्त्व से छुड़ानेमात्र ही कार्यकारी है। यदि पहले से ही अभेद चैतन्य को लक्ष्य में लेने का आशय हो तो
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