Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-3]
[103
कल्याण नहीं हुआ और निगोदादि अनन्त भवों में परिभ्रमण किया। अब, इस अनन्त काल में दुर्लभ मनुष्यभव प्राप्त करके आत्मा का कल्याण कैसे हो? उसकी यह बात है।
जिस प्रकार राजा से मिलने जाने पर पहले बीच में द्वारपाल आता है; इसी प्रकार इस चैतन्य महाराज की प्रतीति और अनुभव करने जाने पर बीच में नव तत्त्व की श्रद्धारूप द्वारपाल आता है। उन नव तत्त्वों का वर्णन चल रहा है; उसमें जीव, अजीव, पुण्य
और पाप - इन चार तत्त्वों का वर्णन आ गया है। सम्यग्दर्शन कैसे प्राप्त हो? यह उसकी विधि कही जा रही है। यह सम्यग्दर्शन का उपाय है। आत्मा, देह इत्यादि परवस्तुओं से भिन्न चैतन्यवस्तु है, उसे वैसा ही मानना, सम्यक्श्रद्धा का मार्ग है। ___जैसे, किसी मनुष्य के पास करोड़ रुपये की पूँजी हो और उसे करोड़ो रुपये की पूँजीवाला माने तो वह मानना सच्चा कहलाता है परन्तु करोड़ रुपये की पूँजीवाले को हजार रुपये की पूँजीवाला मानें तो उस मनुष्य सम्बन्धी मान्यता सच्ची नहीं कहलाती। करोड़ रुपये की पूँजी का ज्ञान करने के बाद, करोड़ रुपये की पूँजी अपने को कैसे हो? यह बात तो मिथ्या है। इसी प्रकार आत्मा अनन्त गुणों का स्वामी सिद्ध भगवान जैसा है, उसे वैसे पूर्णस्वरूप में पहले विचार में लेना, वह व्यवहार से जीवतत्त्व की सच्ची मान्यता है, उसमें अभी विकल्प है। चैतन्यतत्त्व की निर्विकल्प श्रद्धा करने से पूर्व वैसा विकल्प आता है, विकल्प से भी स्वीकार तो पूर्ण का ही है।
आत्मा को सिद्ध समान पूर्ण न मानकर, क्षणिक विकारवाला
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.