Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 3
अच्छी सामग्री होगी तो धर्म होगा - ऐसा जिसने माना है, उसने वास्तव में पुण्य को बन्धतत्त्व में नहीं जाना है। वस्तुतः तो पुण्यभाव अलग वस्तु है और अजीव सामग्री अलग स्वतन्त्र वस्तु है । पुण्य और बाह्य सामग्री को मात्र निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध है । जो इस निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध से इन्कार करता है, उसे भी पुण्यतत्त्व की व्यवहार श्रद्धा नहीं है ।
जीव को बाह्य अनुकूल सामग्री से धर्म करना अच्छा लगता है किन्तु वस्तुतः इस मान्यता में भी जीव और अजीव की एकत्वबुद्धि है। पहले भिन्न-भिन्न नव तत्त्वों को जाने बिना अभेद आत्मा की प्रतीति नहीं होती और उस प्रतीति के बिना धर्म नहीं हो सकता है।
त्रिकाली जीवतत्त्व के कारण बन्ध नहीं होता तथा अजीवतत्त्व के कारण भी जीव को बन्ध नहीं होता । बन्धतत्त्व उस त्रिकाली जीवतत्त्व से भिन्न है तथा अजीव से भी भिन्न है । भावबन्ध तो पर के लक्ष्य से होनेवाली क्षणिक विकारीवृत्ति है, वह बन्धतत्त्व त्रिकाली नहीं है, अपितु क्षणिक है । आत्मस्वभाव को चूककर जो मिथ्यात्वभाव होता है उसे, तथा आत्मभान के पश्चात् भी जो रागादिभाव होते हैं, उन्हें बन्धतत्त्व जाने और कुतत्त्वों के कहनेवाले कुदेव-कुगुरुओं को भी बन्धतत्त्व में जाने, तब बन्धतत्त्व को जाना कहा जाता है। श्री अरिहन्त भगवान के द्वारा कथित इन नव तत्त्वों को जो नहीं जानता और कुतत्त्वों को मानता है, उसने वास्तव में अरिहन्त भगवान को नहीं पहचाना है और वह अरिहन्त भगवान का भक्त नहीं है।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.