Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-3
मुझे नहीं समझ में आती' - ऐसी बुद्धि रखकर सुनेगा तो उसे समझने का यथार्थ प्रयत्न कहाँ से होगा? आज यह बात मैं अभी सुन रहा हूँ परन्तु पूर्ण आत्मा की बड़ी बात कल मुझे याद रहेगी या नहीं रहेगी? - ऐसी भी जिसे शङ्का होती है तो वह 'अहो! यह मेरे आत्मा की अपूर्व बात है, मैं अन्तर्मुहूर्त में एकाग्र होकर इसका अनुभव करूँगा' - ऐसी होंश और नि:शङ्कता कहाँ से लाएगा और ऐसी निःशङ्कता के बिना उसका प्रयत्न अन्तर्मुख कैसे हो पाएगा? अभी भी क्या कहा है ? - यह अन्तर में पकड़कर याद रहने की भी जिसे शङ्का है, उसे अन्तरसन्मुख होकर, वैसा अनुभव कैसे होगा? मैं परिपूर्ण केवलीभगवान जैसा हूँ, एक समय में अनन्त लोकालोक को जानने की सामर्थ्य मुझमें है, उसमें अन्तर एकाग्र होऊँ, इतनी ही बात है। इस प्रकार अपनी सामर्थ्य का विचार करना चाहिए।
नव तत्त्व के भेद की श्रद्धा छोड़कर, अखण्ड चैतन्यस्वभाव के आश्रय से रागरहित श्रद्धा करना, वह परमार्थ सम्यक्त्व है। अखण्ड चैतन्यस्वभाव के आश्रय से नव तत्त्व का रागरहित ज्ञान हो जाता है। इसी बात को स्पष्ट करते हुए आचार्यदेव समयसार गाथा-13 में कहते हैं कि इस प्रकार भूतार्थ से एक आत्मा को जानना, वह सम्यग्दर्शन है। भूदत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं च। आसवसंवरणिज्जरबंधो मोक्खो य सम्मत्तं ॥ भूतार्थ से जाने अजीव जीव, पुण्य पाप रु निर्जरा। आस्त्रव संवर बंध मुक्ति, ये हि समकित जानना॥ Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.