Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
86]
[सम्यग्दर्शन : भाग-3
उसकी बात है। भाई! तू अपना तो कर..., अपना तो सुधार...., अपना हित करने के लिए निज स्वभाव में अन्तर्मुख हो जा... अपने पूर्ण स्वरूप को दृष्टि में ले। भाई! यह देह तो क्षण में छूट जाएगी। अवस्था में अल्पज्ञता होने पर भी सम्पूर्ण चेतनतत्त्व का स्वीकार करनेवाला और अल्पज्ञता का निषेध करनेवाला जीव ही सम्यग्दृष्टि है। अहो! जगत् को यह आत्मतत्व की बात तो सर्व प्रथम समझने योग्य है। दूसरा कुछ भले ही आवे या न आवे, परन्तु यह बात तो अवश्य समझने योग्य है। यह समझे बिना कल्याण नहीं हो सकता। यह समझने से ही भव का अन्त आता है। __ सर्वज्ञभगवान की वाणी में वस्तुस्वरूप की परिपूर्णता प्रसिद्ध की गयी है। प्रत्येक आत्मा अपने स्वभाव से पूर्ण परमेश्वर है, उसे किसी दूसरे की सहायता की अपेक्षा नहीं होती तथा प्रत्येक जड़ परमाणु भी स्वभाव से परिपूर्ण जड़ेश्वर भगवान है। जड़ और चेतन प्रत्येक पदार्थ स्वतन्त्र और परिपूर्ण है। कोई तत्त्व किसी दूसरे तत्त्व का आश्रय नहीं माँगता है। इस प्रकार समझकर अपने परिपूर्ण आत्मा की श्रद्धा करना, वह सम्यग्दर्शन है। समयसार कलश सात में आचार्यदेव कहते हैं कि - अतः शुद्धनयायत्तं प्रत्यग्ज्योतिश्चकास्ति तत्। नवतत्त्वगतत्वेपि यदेकत्वं न मुंचति॥
अर्थात् .... तत्पश्चात् शुद्धनय के आधीन जो भिन्न आत्मज्योति है, वह प्रगट होती है कि जो नव तत्त्वों में प्राप्त होने पर भी अपने एकत्व को नहीं छोड़ती।
जो भिन्न आत्मज्योति थी, वही प्रगट हुई है। पर्याय की दृष्टि
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.