Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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एक ही प्रकार का है। अहो! अनन्त सर्वज्ञों द्वारा कथित, सन्तों द्वारा सेवित, तीर्थङ्कर भगवन्तों और कुन्दकुन्दाचार्यदेव जैसे सन्तों की वाणी में आया हुआ यह मार्ग है। ___बारह वैराग्य भावना में कहते हैं - भाई! बाहर के पदार्थ तो शरण नहीं परन्तु अन्दर के विकल्प भी शरणरूप नहीं हैं। यह देह तो क्षण में बिखर जायेगी, यह तो तुझे अशरण है। इससे तेरा अन्यत्व है और अन्दर के विकल्प भी अशरण-अध्रुव और अनित्य हैं। उनसे तेरे चैतन्य का अन्यत्व है-ऐसा जानकर, तेरे चैतन्य की ही भावना भा! तेरे चैतन्यधाम में अनन्त केवलज्ञान और पूर्णानन्द की पर्यायें प्रगट होने की सामर्थ्य है। इस कारण परमार्थ से चैतन्य धाम ही शाश्वत् तीर्थ है; अन्तर्मुख होकर उसकी यात्रा करने से भवसागर से तिरा जाता है।
धर्मी कहते हैं कि समस्त विकल्पोंरूप बन्धपद्धति को छोड़कर अपार चैतन्यतत्त्व को मैं अनुभव करता हूँ; मेरा उत्पाद-व्यय-ध्रुव चैतन्यभाव द्वारा ही भाये जाते हैं। श्रुतज्ञान को अन्तर्मुख करके ऐसा अनुभव हो, वह सम्यग्दर्शन है। उसके लिये विकल्प का आधार नहीं है। अरे! निर्विकल्प चैतन्य की शान्ति में विकल्प का सहारा मानना तो कलङ्क है। निर्विकल्प शान्ति में विकल्प का सहारा नहीं। अनुभूति के समय विकल्प का अभाव है 'मैं साधक हूँ और सिद्ध होनेवाला हूँ' – ऐसे विकल्प, श्रुतज्ञानी को अनुभव के समय नहीं हैं। निर्विकल्प अनुभव में मुनि को मुनिपने के विकल्प नहीं और श्रावक को भी श्रावकपने के विकल्प नहीं हैं; निर्विकल्पपने में दोनों समान हैं। मुनि को विशेष आनन्द और विशेष स्थिरता है तथा गृहस्थ को कम है - यह बात भी यहाँ गौण
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