Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-3
बन्धन से छुटकारे का उपाय बतलाकर
आचार्यदेव शिष्य की जिज्ञासा तृप्त करते हैं (श्री समयसार गाथा ६९-७०के प्रवचनों का दोहन) हे भाई! सन्त तुझे आत्मा का सच्चा भोजन जिमाते हैं कि जिसके स्वाद से तुझे आत्मा के अतीन्द्रिय आनन्दरस का अनुभव होगा; इसलिए एक बार उसका रसिया हो.... और जगत् के दूसरे रस को छोड़। मङ्गलस्वरूप भेदज्ञान ज्योति को नमस्कार हो!
समयसार के इस कर्ता-कर्म अधिकार में वस्तुस्वरूप का रहस्य और सम्यग्दर्शन की चाबी है; स्व-पर का तथा स्वभाव और विभाव का स्पष्टरूप से भेदज्ञान, आचार्यदेव ने इस अधिकार में कराया है।
आत्मा ज्ञानस्वभावी है, उसकी पूर्ण सामर्थ्य खिल जाने पर, वह सर्वज्ञ होता है। वे सर्वज्ञ परमेश्वर जगत के ज्ञाता हैं किन्तु कर्ता नहीं। इस जगत में अनन्त जीव और अजीव पदार्थ हैं, वे अनादि -अनन्त स्वयं सिद्ध सत् हैं, उन पदार्थों का कोई कर्ता नहीं है। प्रत्येक पदार्थ, द्रव्य-गुण-पर्यायस्वरूप है; द्रव्य-गुण त्रिकाल है, पर्याय प्रतिक्षण नयी-नयी होती है। जिस प्रकार त्रिकाली द्रव्य या गुण का कोई कर्ता नहीं है, उसी प्रकार उसकी प्रतिक्षणवर्ती पर्यायों का भी कोई दूसरा कर्ता नहीं है।
सर्वज्ञ, जगत के पदार्थों को ज्यों का त्यों जाननेवाले हैं; वे सर्वज्ञ भी सबके मात्र जाननेवाले हैं, किसी के करनेवाले या बदलनेवाले नहीं। यदि कोई स्वयं को पदार्थों का करनेवाला या
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